रविवार, 16 दिसंबर 2012

फूल है ये

कुछ तुड़े से ,
कुछ मुड़े से ,
और कुछ,
तनकर खड़े से
क्यारियों के ,
फूल है ये ।

हो कहानी,
प्रेम की ,
या मगजमारी ,
क्षेम की ,
हर जगह ,
उल्लास की ,
उठती हुई सी ,
धूल है ये ।

समिति हो ,
संवेदना की ,
इष्ट के ,
आराधना की ,
आर्त के ,
मुश्किल क्षणों में
नित्य चुभते ,
शूल है ये ।

राजपथ
या राजघाट ,
या कभी
शमशान घाट ,
हर नगर ,
हर ग्राम-घर के ,
सुख-दुखों का ,
मूल है ये ।

रास्ता
तनहाइयों का ,
अनगिनत
कठिनाइयों का ,
कंटको के
बीच से ,
पैगाम तू मत भूल ,है ये ।

क्या चमेली ,
रातरानी ,
बेला-चंपा ,
की कहानी ,
हर तरह
हर रंग के इन ,
साथियों का,
मेल है ये ।

मस्त मधु हैं ,
मस्त कलियाँ ,
तन से चिपकी ,
हैं तितलियाँ ,
गूंजते ,
अपनी धुनों में ,
भ्रमर का ,
संगीत हैं ये ।

पददलित
करता है मानव ,
नित्य लाखों को
यहाँ पर ,
पर कभी ,
उफ़ तक न करते ,
क्या करोगे ,
फूल है ये ।

फिर मचलते ,
खिलखिलाते ,
जीव औ जड़ ,
को सिखाते ,
जिन्दगी के
इस सफ़र में ,
क्षण यहाँ ,
अनमोल हैं ये ।

                     -  सच्चिदानन्द तिवारी 
               -

2 टिप्‍पणियां:

  1. सच्चिदानन्द तिवारी जी,


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