बुधवार, 5 अप्रैल 2017

         " इंसान अगले एक हज़ार साल तक ज़िंदा नहीं रह पायेगा "

                ❛विनाश ❲ नष्ट होना ❳ नियम है जबकि जीवित रहना ❲उत्तरजीविता ❳अपवाद ❜
                                                                                                                           -कार्ल सैगोन (अमेरिकी                                                                                                                भौतिकशास्त्री व अंतरिक्ष विज्ञानी )
                 मानव एक ऐसा प्राणी है जिसने प्रकृति के संरचनात्मक व क्रियात्मक तत्वों की पहचान करके उसके नियमों की व्याख्या की ,अपनी बुद्धि व विवेक का उपयोग करते हुए उसने इन नियमों की मदद से प्रकृति के संसाधनों का उपयोग किया और एक ऐसी आधुनिक सभ्यता का निर्माण किया जहाँ आज अन्य जीव-जंतु व प्राकृतिक संसाधन मानवीय इच्छा व आवश्यकता के साधन मात्र प्रतीत होतें हैं । बाधाओं का डटकर मुकाबला करते हुए तथा परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाते हुए आत्मविश्वास से भरा मानव आज चाँद तक पहुँच गया है और उसके आगे के ब्रम्हाण्डीय विस्तार को इस आशा व विश्वास से देख रहा है कि एक दिन वहां भी इन्सानियत का राज होगा ।
                  
              यद्यपि  विकास के इस दौर में इंसान के विनाश की बात को कुछ लोग गम्भीरता से भले ना लें किन्तु  उत्थान के बाद पतन व पतन के बाद उत्थान ही प्रकृति का  सार्वभौम नियम है,इस बारे में समय सीमा ,मात्रा व तरीके को लेकर विवाद हो सकता है पर इसे झुठलाया नहीं जा सकता। हाल ही में 'पृथ्वी पर इन्सान के भविष्य' के विषय पर चर्चा करते हुए सदी के महानतम वैज्ञानिकों में से एक स्टीफन्स हॉकिंस ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि "यदि इन्सान को अपना अस्तित्व एक हज़ार वर्षों से अधिक बनाये रखना है तो उसे अन्य दूसरे ग्रहों को अपना उपनिवेश बनाना होगा तथा वहां इंसानी बस्तियाँ बनानी होगीं ,हमारी नाजुक पृथ्वी पर इन्सान का अस्तित्व अब एक हज़ार से अधिक वर्षों तक संभव नहीं है ।" स्टीफन्स हॉकिन्स के इस कथन से अनेक सवाल उठने लगे कि क्या वाकई में मानव एक हज़ार वर्ष से अधिक जीवित नहीं रह पायेगा ?क्या एक महान वैज्ञानिक द्वारा इस तरह का कथन मानव की  वैज्ञानिक प्रगति व सभ्यताई विकास को कम करके आंकना है ?क्या आधुनिक मानव अपने मातृ ग्रह पृथ्वी को बचाये रख पाने में सक्षम नहीं होगा ?ऐसे तमाम सवाल एक बार पुनः विद्वानों व वैज्ञानिकों के मध्य चर्चा का प्रमुख विषय हो गए । 

                  हालांकि इन्सान के भविष्य की समाप्ति की बात कोई पहली बार नहीं की गयी है ,वैज्ञानिकों ,मानव विज्ञानियों तथा पर्यावरणविदों के मध्य ऐसी बहसें बहुत पहले से ही होती रही हैं । साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में तथा कलाकारों ने अपनी कलाओं जैसे सिनेमा में इन्सान के अस्तित्व की समाप्ति की ओर संकेत किया है । एलन वीज़मैन की किताब "द वर्ल्ड विदआउट अस ", जॉन लेसली की किताब "द इंड ऑफ़ द वर्ल्ड "
व सिनेमा में "द ओमेगा मैन "(1971) से लेकर "द एक्सटिंक्शन "(2015) जैसी फिल्मे ऐसी सम्भावनाओं को अभिव्यक्त करती रहीं हैं । इतिहासकारों ने भी पूर्वकाल में विकसित मानव सभ्यताओं के अंत के साक्ष्य प्रस्तुत कियें हैं तो वहीं धार्मिक मान्यताओं व दार्शनिक सिद्धान्तों में भी "क़यामत के दिन ,लॉस्ट जजमेन्ट या महाप्रलय " जैसी अवधारणाएँ इन्सान के अंत से जुड़ी हुई हैं । 

                    अब अगर हम मानव जीवन की समाप्ति की बात करें तो हमारी धरती की वास्तविकताओं के मद्देनजर इसे केवल एक कपोल कल्पना ही नहीं माना जा सकता । मानव की स्वार्थपरकता व आक्रामकता ने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी हैं कि अगले एक हज़ार साल के अंदर इंसान के जिन्दा न रह पाने की बात भी आज आश्चर्यजनक नहीं लगती । स्टीफन्स हॉकिन्स के अनुसार "गुफाकाल से लेकर वर्तमान सभ्यताई युग तक मानव की आक्रामकता व स्वार्थपरकता एक सहज प्रवृत्ति के रूप में विद्यमान रही है ,पहले यह उसके जीवित रहने या विकास करने की आवश्यकता के रूप में थी जैसे दूसरों पर हमला करके उसके भोजन व औरतों पर कब्ज़ा कर लेना ,जबकि आज यह न केवल पर्यावरण विनाश व संसाधन क्षरण  बल्कि नाभिकीय युद्ध जैसी सम्भावना को भी उत्पन्न कर रही है ।"

                       ध्यातव्य है कि पहले मानवीय  प्रवृत्तियों व क्रियाकलापों का प्रभाव किसी विशिष्ट क्षेत्र ,व्यक्ति या समूह तक सीमित हुआ करता था किन्तु आज इनके प्रभाव का दायरा वैश्विक ही नहीं बल्कि खगोलीय या आकाशीय हो गया है । जनाधिक्य ,पर्यावरण विनाश ,जलवायु परिवर्तन व ओजोन परत में ह्रास इत्यादि ऐसे ही कुछ प्रभाव हैं  जिनके प्रबंधन पर ही इन्सान का भविष्य टिका नजर आता है । 

                        हालांकि कुछ विद्वान जलवायु परिवर्तन को प्रमुख चुनौती स्वीकार करतें हैं किन्तु  वे इसे प्रत्यक्षतः  मानव अस्तित्व के लिए खतरा मानने से इन्कार करते हैं । कैलगरी विश्वविद्यालय (कनाडा )के प्रोफेसर शान मार्शल के अनुसार "जलवायु परिवर्तन से होने वाले समुद्रतटीय सीमा में बदलाव ,रोगों के फैलने या मौसम चक्र में होने वाले परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाला असंतोष या सामाजिक संघर्ष इन्सान के अस्तित्व की समाप्ति का एक प्रबल कारक हो सकता है विशेषकर ऐसे दौर में जब सामूहिक विनाश के हथियारों के जखीरे प्रत्येक राष्ट्र के पास मौजूद हों ।"

                         विश्वप्रसिद्ध विद्वान नॉम चोम्स्की मानवीय स्वार्थ व आक्रामकता को वर्तमान राष्ट्रराज्यों की प्रभुत्व व एकाधिकारवादी नीतियों से जोड़ते है उनके अनुसार "सरकारों द्वारा सुरक्षा के नाम पर हथियारों के जखीरे को बढ़ाते जाना तथा इस पर होने वाली सार्वजनिक बहसों को सुरक्षा के नाम पर दबाते जाना अपने स्वार्थसिद्धि व प्रभुत्व के विस्तार की कोशिश है जो इंसान को सामूहिक आत्मविनाश की ओर ले जाता है । "
ध्यातव्य है कि आज भी पृथ्वी पर कम से काम 22600 नाभिकीय हथियार है जिसमें से कम से कम 7770 क्रियाशील हैं, इसी के साथ  विश्व राजनीति में राष्ट्रों के मध्य व्याप्त संघर्ष ,आतंकवाद का वैश्विक स्वरुप तथा परमाणु अप्रसार सन्धि पर असहमति जैसे मुद्दे भी हैं जो कभी भी विश्व को नाभिकीय युद्ध के मुहाने पर ले जाने में सक्षम हैं ,अतः 1000 वर्ष के अंदर इन्सान के ज़िन्दा न रह पाने का विचार महज कोरी कल्पना नहीं हो सकता। शीतयुद्ध काल में घटित हुआ क्यूबा मिसाइल संकट ऐसी ही संभावनाओं का एक नमूना मात्र है ,विद्वानों के अनुसार भविष्य में ऐसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ेगी । 

                         अपनी पुस्तक "आवर फाइनल ऑवर "में सर मार्टिन रीस विनियमन व सावधानी के बिना वैज्ञानिक महाप्रयोगों तथा नित  नई तकनीकों के अनुप्रयोगों को इन्सानी वजूद के लिये खतरा माना है ,उदाहरण के तौर पर सर्न द्वारा किये जाने वाले लार्ज हैड्रोन कोलाइडर (एल एच सी ) जैसे प्रयोग में कल अगर कुछ असामान्य घटित होने लगे या किसी तापनाभिकीय प्रयोग के मद्देनजर पृथ्वी के वायुमण्डल व जलमण्डल की हाइड्रोजन संलयित होने लगे या अन्य कोई ऐसी घटना जो मानवीय क्षमता व ज्ञान के दायरे से बाहर हो । 


                          इसके अतिरिक्त अगले 1000 वर्ष के अन्दर इन्सान के ज़िन्दा ना रह पाने के संभावित कारणों में वैज्ञानिक  किसी आकाशीय या अंतरग्रहीय घटना की आशंका को भी स्वीकृति देतें हैं ,जैसे किसी उल्कापिण्ड या क्षुद्रग्रह का पृथ्वी से टक्कर या किसी तारे से असमान्य मात्रा में खतरनाक विद्युत् चुम्बकीय किरणों (जैसे गामा विकिरण ) का उत्सर्जन । स्टीफन्स हॉकिन्स इससे भी एक कदम आगे जाकर ब्रह्माण्ड के दूसरे ग्रह के प्राणियों (एलियंस ) के आक्रमण को भी इन्सान के अंत के सम्भावित कारणों के रूप में देखते हैं । हॉलीवुड की कई मशहूर फिल्में जैसे द डीप इम्पैक्ट (1998 ),द इंडिपेंडेन्स डे (1996)द इन्वेसन इत्यादि ऐसी ही आकाशीय या अंतरग्रहीय घटनाओँ को प्रदर्शित करती हैं । 

                         कुछ अन्य कारक जो एक हज़ार वर्ष के अंदर मानव के विनाश की क्षमता रखते हैँ उसमें जैविक आनुवांशिक संक्रमण के कारण इंसानी जीन में बदलाव से किसी विशेष तरह के जीव की उत्पत्ति या किसी विशेष क्षमता वाले विषाणुओं का संक्रमण  अथवा मशीनों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विकास इत्यादि प्रमुख हैं । कुछ वैज्ञानिक भविष्य में शीतयुग की संकल्पना को भी मानव अस्तित्व के समक्ष चुनौती मानते हैं । 


                         तमाम मौजूद कारकों व संभावनाओं के बावजूद ज्यादातर विद्वान व वैज्ञानिक इन्सान के भविष्य को अगले 1000 वर्षों तक सीमित करने के पक्ष में नहीं हैं ,यहाँ तक कि स्टीफन्स हॉकिन्स भी धरती तक सीमित रहने पर ही मानव प्रजाति के नष्ट होने की भविष्यवाणी करते हैं किन्तु उनका यह विश्वास है कि आने वाले एक हज़ार वर्षों के अन्दर इन्सान एक अन्तरग्रहीय प्राणी होगा । एक तरह से देखें तो स्टीफन्स हॉकिन्स मानव के अंतरिक्ष कार्यक्रम में तेजी लाने की ओर इशारा कर रहें हैं । दुनियां के पहले निजी अंतरिक्ष एजेंसी स्पेस एक्स के संस्थापक इलोन मस्क भी कुछ इसी प्रकार की बात करते हुए कहते हैं कि ❝मानवता का भविष्य दो दिशाओं में विभाजित हो रहा है ,या तो यह बहुग्रहीय होगा या फिर पृथ्वी की ओर सिमटता जायेगा जिसका निश्चित परिणाम विनाश होगा । ❞    

                          इसी प्रकार वैश्विक तापन व जलवायु परिवर्तन के संभावित परिणामों को लेकर भी विवाद है ,हालांकि ज्यादातर विद्वान इसे एक अवश्यम्भावी घटना मानते हैं किन्तु इसके परिणाओं से इन्सान का अंत हो जायेगा ऐसा मानने वाले अत्यल्प हैं । ध्यातव्य है कि जुरासिक व क्रिटेशियस युगों में पृथ्वी का औसत तापमान 25 डिग्री सेल्सियस होने के वावजूद पृथ्वी पर जीवन था तो क्या दुनिया का सबसे अनुकूलनशील व विवेकशील प्राणी मानव 18 -20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अपने आपको अनुकूलित नहीं कर पायेगा ?यह कहना सही नहीं प्रतीत होता । यहाँ तक आईपीसीसी (इन्टर गवर्नमेण्ट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ) भी जलवायु परिवर्तन या तापमान वृद्धि को इन्सान के विनाश का कारण मानने को तैयार नहीं है । अधिकांश वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन बहुतों के मौत का कारण बन सकता है किन्तु सभी के नहीं । यह हमारी जन्तु पारिस्थितिकी में बदलाव ला सकती  है ,अधिकांश बर्फ को पिघला सकती है ,समुद्र को अम्लीय बना सकती है या फसल उत्पादकता व जल की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है । वास्तव में हम लोग एक ऐसा प्रयोग कर रहें हैं जिसके परिणाम अनिश्चित हैं । 

                           संभावित नाभिकीय युद्ध या परमाणु त्रासदी के प्रति भी ज्यादातर लोग आशावादी रवैया अपनाते हैं उनके अनुसार 'यदि कूटनीतिक या वैचारिक प्रक्रिया भी इस प्रकार के हादसों को न रोक सकीं तो भी सम्पूर्ण नाभिकीय युद्ध इंसान के अस्तित्व को निकट भविष्य में समाप्त नहीं कर सकता । कुछ लोग धरती के अन्दर सुरंग में या किसी यान में बैठकर आकाश में उड़ते हुए या फिर धरती पर ही किसी बचे हुए कोने में सिमटे हुए इससे जरूर बच निकलेंगें और अपनी अनुकूलन क्षमता ,जिजीविषा व योग्यता के बल पर पुनः मानव सभ्यता को स्थापित करने में सफल होंगें । 

                           इसी प्रकार किसी खगोलीय पिण्ड के निकट भविष्य (1000 वर्षों में ) में पृथ्वी से टकराने की संभावना को भी वैज्ञानिक ख़ारिज करते हैं विशेषकर यह देखते हुए कि पिछले लाखों करोड़ों वर्षों में पृथ्वी या किसी अन्य पडोसी ग्रह पर इस प्रकार के विनाशकारी टक्करों के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं । कुछ अन्य कारण जिनसे अगले 1000 वर्षों में इंसान के अंत की संभावना प्रकट की गयी है वो या तो पूरी तरह काल्पनिक ही प्रतीत होतें हैं या फिर मानवीय क्षमता के दायरे में मानकर वैज्ञानिकों व बुद्धिजीवियों द्वारा ख़ारिज कर दिये जाते हैं । 


                          उपरोक्त  विश्लेषण से यह तो स्पष्ट है कि इन्सान के अस्तित्व के समाप्ति या उत्तरजीविता को किसी भी समयसीमा से बांधकर देखना सही नहीं है । कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इमैनुअल विन्सेट इस बारे में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए कहते हैं कि ❝यद्यपि भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता फिर भी वैज्ञानिक व बौद्धिक जगत द्वारा मानव समाज को भविष्य के खतरे के प्रति आगाह करना जरुरी है । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि एक समाज के रूप में हम इसे किस प्रकार प्रबंधित करते हैं । ❞इसी प्रकार एमआईटी के निदेशक जॉन स्टरमैन कुछ ज्यादा ही आशान्वित होकर कहते हैं कि ❝इन्सान के ज़िन्दा रहने या न रहने का  अनुमान लगाना मूर्खतापूर्ण है ,वास्तव में इंसान का भविष्य अनुमान या कयास से नहीं बल्कि मानव इच्छा से ही निर्धारित होगा ,किसी अन्य ग्रह पर जाकर रहने की बात करने वाले लोग विज्ञान गल्प पर आधारित अमेरिकी सीरियल स्टार ट्रेक  ज्यादा देख रहे हैं,इन्सान यहीं रहेगा और सतत ढंग से रहना सीख जायेगा । ❞
   


                           निश्चित रूप से इन्सान से अधिक अनुकूलनशील और सामर्थ्यवान प्राणी नहीं है जो आर्कटिक से लेकर कालाहारी तक पाषाणयुगीन प्रौद्योगिकी के दम पर जिन्दा रह सके ,जबकि इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि नवपाषाणकाल के अंत तक मानव ने लगभग सम्पूर्ण पृथ्वी का औपनिवेशिकरण कर लिया था । किसी भी वस्तु को खाने की क्षमता के अलावा हमारे पास विचार करने ,याद रखने तथा सहानुभूति या संवेदना प्रगट करने की क्षमता है । हमारा जैविक हार्डवेयर अनेक प्रकार के सांस्कृतिक सॉफ्टवेयर को चलाने में सक्षम है । समय के साथ विकसित हुई अनेक मानव संस्कृतियों में से किसी भी परम्परा के साथ चल सकने में हम सक्षम हैं ,यदि हमारी वर्तमान पीढ़ी कोई बड़ी गलती भी कर रही है तो अपनी विविधीकृत मानसिक योग्यता व मानवीय दक्षता के बल पर हम इन सांस्कृतिक तत्वों में से उपयुक्त को अपना भी सकतें हैं तथा आवश्यकतानुसार नये तत्वों की खोज भी कर सकते हैं । अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में बिभिन्न उपलब्ध विकल्पों में से हम ऐसी पद्धतियों व तकनीकों को चुनने में सक्षम हैं जो अधिकतम सामर्थ्यवान तथा पृथ्वी के लिए न्यूनतम विनाशकारी हो ।  निष्कर्षतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अगले एक हज़ार सालों तक ही नहीं बल्कि इन्सान  तब तक ज़िन्दा रह सकता है जब तक कि हमारे सौरमण्डल के सूर्य की वर्तमान चमक विद्यमान रहेगी । 
                                                                           नाम -सच्चिदानन्द तिवारी 
                                                                           पता -ग्राम तिवारीपुर ,पोस्ट-बेलाही ,तहसील -लंभुआ 
                                                                           जिला -सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश)-222302 
                                                                           मोबाइल नम्बर -8130272156 
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