बुधवार, 5 दिसंबर 2012

अभिलाषा


विचरण करते नभ मंडल में ,
खग वृन्दों की उन्मुक्त उड़ान ।
लघु कोमल चंचल पंखों से ,
मापन करते सारा जहान ।।
असीमित संसार है इनका ,
मजहब की दीवार नहीं है ।
जांति -पांति ना भेद -भाव है ,
कलुषित द्वेश विकार नहीं है ।।

अपने दानों से मतलब है ,
अम्बर के दीवानों को ।
सृजित करते पत्तों -तिनकों से ,
अपने नीड़ घरानों को ।।

है विवेक और ज्ञान मनुज में ,
पर ऐसा संसार नहीं है ।
है कोई मानव की बस्ती ,
जहाँ कोई भी दीवार नहीं है ।।

नभ चर के सुन्दर  समूह में ,
मैं भी बस इक पंछी होता ।
क्रीड़ा करता नभ मंडल में ,
वट शाखा पे वसेरा होता ।।
                                     

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