मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

                                           मुक्तेश्वर यात्रा 2023 


                 आज 13 अप्रैल 2023 को मुक्तेश्वर के गोस्टॉपस हॉस्टल के कमरे में बैठ कर बाहर खिड़की से निहारते हुए मै यह लेख लिख रहा हूँ | काफी दिनों से जिस शांति की तलाश में था वह यहाँ मुक्तेश्वर में आकर पूरी हुई | वैसे तो यात्राएँ अब कमोवेश अपने जीवन का हिस्सा बन गयी हैं किन्तु  इस यात्रा में मेरा उद्द्येश्य अपनी भागदौड़ की यात्राओं को किनारे कर प्रकृति की नीरवता के मध्य अपने आप से संवाद करना था जो कि इस जगह सुकून से मै  कर सकता हूँ | 

                  खिड़की से बाहर दूर तक फैली हरी भरी घाटी की सुंदरता व खूबसूरत पहाड़ी घर मन को एक अलग सुकून प्रदान कर रहें हैं ,सब कुछ स्थिर सा महसूस हो रहा है, यहाँ गति केवल हवा के झोंकों से हिलते पेड़ों की दिखाई पड़ रही है तो वहीँ आवाज केवल कुछेक चिड़ियों एवं पेड़ों की सरसराहट की सुनाई दे रही है |  






गो स्टॉप्स हॉस्टल की खिड़की से 


                   वैसे तो मुक्तेश्वर मै पहले भी आ चुका हूँ पर परंपरागत तरीके से पॉइंट टू पॉइंट फोटो खिंचा कर चला गया था किन्तु जाते जाते यहाँ के खूबसूरत हिमालय के दृश्यों ,हरी भरी घाटियों एवं कलरव करते पक्षियों के बीच  कुछ समय व्यतीत करने की इच्छा मन में बनी रह गयी थी ,इसी धुन में कल से उत्तर प्रदेश के अपने गृह जनपद सुल्तानपुर से आज यहाँ मुक्तेश्वर की वादियों तक की स्वयं कार ड्राइव की जरा भी थकान अपने चेहरे पर महसूस नहीं हो रही थी |वैसे तो दिनभर में यहाँ कुमाऊं के पहाड़ो पर लखनऊ से कार ड्राइव करके आराम से पहुंचा जा सकता है किन्तु अपनी रफ़्तार व लखनऊ से लगभग 200 किलोमीटर और दूरी से चलने के कारण मै हरदोई शाहजहांपुर बरेली से ड्राइव करते हुए शाम तक कुमाऊँ के प्रवेश द्वार हल्द्वानी पहुँच गया फिर वहीँ एक होटल में स्टे कर आज सुबह 7:30 के आस पास हल्द्वानी से भीमताल भोवाली रामगढ होते हुए लगभग 3.5 घंटे में मुक्तेश्वर  पहुँच गया यहाँ पर गोस्टॉपस हॉस्टल में पहले से बुकिंग होने के कारण सीधे यहीं आया जहाँ पता चला कि चेक इन टाइम लगभग 2 घंटे बाद 1 बजे होगा तो इन दो घंटो के उपयोग करने के लिए हॉस्टल से लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुक्तेश्वर महादेव मंदिर व चौली की जौली देखने चला गया | 

                     मुक्तेश्वर में 2315 मीटर ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव के मंदिर की बड़ी मान्यता है ,इस मंदिर के पास खड़े होकर यहाँ की शांति को महसूस करना तथा दूर तलक फैली घाटी की खूबसूरती को निहारते रहना या फिर कहीं एक कोने में बैठकर ध्यान लगाना अपने आप में अद्भुद है ,जहाँ से जाने का मन ही नहीं करता है | मंदिर के बगल से ही घने जंगलों से होकर एक रास्ता कुछेक विचित्र चट्टानी संरचना वाली जगह पर ले जाता है इसे चौली की जाली के नाम से जाना जाता है इस जगह से  कुमाऊँ पहाड़ी के साथ हिमालय पर्वत की चोटियों के दर्शन होते हैं  ,बहुत सारी साहसिक गतिविधियां जैसे रॉक क्लाइम्बिंग ,ज़िप लाइन इत्यादि भी यहाँ की जाती है | 

                                                   मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के पास से दृश्य 

                                                                  चौली की जाली 

                 इन महीनों में पहाड़ों पर खिलने वाले खूबसूरत बुरांस (रोडोडेंड्रोन ) के फूलों का रस भी यहाँ मंदिर व चौली की जौली के आस पास खूब बिकता है ,मैंने भी इसके स्वाद का अनुभव लिया फिर पहाड़ी राजमा ,भट की दाल व पहाड़ी रायते के साथ चावल को दोपहर के भोजन में आनंद उठाया और वापस अपने हॉस्टल में आ गया ,अब लगभग 2 बज चुके थे ,कमरे की बालकनी से फैले सुन्दर पहाड़ियों ,घाटियों व बागानों पर पड़ती सूर्य की सुनहली किरणें अद्भुद व मनोरम दृश्य उत्पन्न कर रही थी | बस फिर क्या ,आराम करने का ख्याल छोड़कर यह वृत्तांत लिखने बैठ गया हूँ | 

                    तीन बजे के आस पास का समय दिन का  सबसे गर्म समय होता है किन्तु इस समय यहाँ पर चलती ठंडी हवाओं से मैंने अपने गर्म कपड़े भी निकाल लिए | पाँच बजे के आस पास चाय पीकर हॉस्टल से बाहर आकर आस पास घूमने तथा किसी सुन्दर पहाड़ी सूर्यास्त पॉइंट ढूंढने निकल गया | ऊपर सड़क के पार जाकर एक पतली सड़क एक गांव की तरफ जाती थी जिस पर थोड़ा आगे जाकर एक ऐसा पॉइंट मिला जहाँ से खूबसूरत पहाड़ी सूर्यास्त का आनंद लिया जा सकता था यहाँ पर मौजूद एक दो किशोरों से बात करते हुए यहाँ कुछ समय व्यतीत किया | चूँकि सूर्यास्त में अभी समय था तो मुख्य सड़क पर वापस आकर ऐसे ही कुछ देर इवनिंग वाक पर जाकर वापस आने का निश्चय किया और  लगभग 2 किलोमीटर चलकर यहाँ के सड़क किनारे के मकानों होटलों एवं रेस्टारेंट इत्यादि के साथ इस जगह के पर्यटन व्यवसायिकता एवं संभावनाओं पर भी विचार करता रहा | 

                   इसके बाद दूसरी सुबह 5 बजे से उठकर अपनी बालकनी में बैठकर सुबह की पहली किरण का इंतजार करने लगा और एक खूबसूरत सुबह के साथ ही मुक्तेश्वर से अपनी बैग पैक कर लगभग  सात बजे के आस पास अपनी कार से एक लॉन्ग ड्राइव पर पुनः घर की ओर निकल पड़ा |



                                                                 सूर्योदय मुक्तेश्वर 14 अप्रैल 2023