खोजता रहता हूँ ,
इक नाम इसी मेलें में ।
था कोई अपना भी ,
दुनिया के इस झमेले में ।
खोजता -------------
जैसे आता है चाँद ,
शाम घिरने पर आँगन में ,
और चला जाता है ,
नित शहर के उजाले में ।
खोजता -----------
जैसे कलियों पर ,
शबनम की चमकती बूंदें ,
खो जाती है कहीं ,
उषा किरण के रेले में ।
खोजता --------------
आ जाओ फिर कभी ,
फुर्सत में ऐ जान-ए-ग़ज़ल ,
रहते है अभी भी हम ,
ढहते इसी वसेरे में ।
खोजता -------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें