गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

मेरी ग़ज़ल




निगाहों में समाया था, कभी ये ख्वाब मेरे भी ,
रौशन इस फिजाँ में कोई ,अपना आशियाँ होगा ।

चमकती रेत ,सूरज की तपिश है ,सारे आलम में ,
खुदा जाने यहाँ दरिया में अब ,पानी कहाँ होगा ।

नहीं होंगी दरकती डोरियाँ ,रिश्तों की आपस में ,
बहेगा खून ना सरहद पे ,राह-ए-राजदां होगा ।

रहेंगीं साथ साहिल पर ,हजारों रंग की हस्ती ,
न हो आमद बलाओं की ,समंदर शांत सा होगा ।

न हो संगीन के साये ,कभी मज़हब की राहों में ,
जमीन-ए-हिन्द का रौशन सितारा यार तब होगा ।

निगाहों में समाया था, कभी ये ख्वाब मेरे भी ,
रौशन इस फिजाँ में कोई ,अपना आशियाँ होगा ।।

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