तेरे बाद इस तूफां का मंजर कम नहीं होता ,
शबा चलती थी ,पंखुड़िया लरजती ,तेरे जुल्फों की ,
निखरती है कभी इक अक्स ,दिल के कोरे कागज पर ,
दरिया के पुराने पुल से ,बैठे फेंकते पत्थर ,
सहर के लाल आंचल के तले ,हम-तुम नहाए से ।
शबा चलती थी ,पंखुड़िया लरजती ,तेरे जुल्फों की ,
बिखरती शाम के साये में ,प्याले तेरे हाथों के ।
निखरती है कभी इक अक्स ,दिल के कोरे कागज पर ,
निकलते हर्फ़ से लिपटी ,ग़ज़ल है मेरी सांसों में ।
(सच्चिदानन्द तिवारी )
Nice one dear...!!!
जवाब देंहटाएंdhanyavad
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