शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

गजल

तेरे बाद इस तूफां का मंजर कम नहीं होता ,
उमड़ते हैं जवां रातों में काले मेघ यादों के ।

दरिया के पुराने पुल से ,बैठे फेंकते पत्थर ,
सहर के लाल आंचल के तले ,हम-तुम नहाए से ।





शबा चलती थी ,पंखुड़िया लरजती ,तेरे जुल्फों की ,
बिखरती शाम के साये में ,प्याले तेरे हाथों के ।


निखरती है कभी इक अक्स ,दिल के कोरे कागज पर ,
निकलते हर्फ़ से लिपटी ,ग़ज़ल है मेरी सांसों में ।

                      (सच्चिदानन्द तिवारी )

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