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मुसाफ़िर
यादों के हंसी गुलशन में जीना सीख लेना तुम ,
हवाओ के सदिश रुकना व चलना सीख लेना तुम |
कभी खुशियों के मेले आयेंगे तुझको हंसायेगे ,
कभी गम से भरे सागर यहाँ तुझको रुलायेंगे ||
मिलेंगे हर कदम पर हर तरह के लोग इस पथ पर ,
सभी के साथ मिलकर नित्य चलना सीख लेना तुम ||
यादों के............................ ............................
मुसाफिर है हमें चलना है इन पथरीली राहों में ,
नहीं रुकना भयंकर ठोकरों दुःख की पनाहों में |
मिलेंगे दिन नए राते नयी बाते नयी पथ में ,
उनको यद् रखना और उनको याद आना तुम ||
यादों के ............. ................. ................
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भेंड़े चल रही हैं ।
मालिक के पीछे ,
ऊबड़ खाबड़ और टेढ़े मेढ़े रास्तों पर ।
समतल और सीधे साधे रास्तो पर ।।
नहीं पता कहाँ जाना है ,क्या करना है ?
इस अनवरत पथ पर कहाँ तक चलना है ??
यदि कोई भेड़ दूसरे रास्ते पर जाती है ,
मालिक की घुड़की पाती है ।
उसकी साथी भेड़े भी मुंह मोड़ लेती हैं ।
उसे निगरानी में रख मन माफिक चलवाया जाता है ,
अपना काम निकलवाया जाता है ।
यदि ऐसा नहीं है तो,
बुचडखाने भिजवाया जाता है ।
इसलिए कहता हूँ ,
तू भेड़ ना बन सिंह बन ।
जो स्वछन्द पूरे वन में विचरण करता है ।
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