रविवार, 28 अक्तूबर 2012

तारें जमीं पर ..

                 अपने कॉलेज के पुरातन छात्र समारोह में कल मैंने देखा 1987 ,सिविल इंजीनियरिंग बैच के रवि राय सर को ।सिंगापुर में कुछ साल तक इंजीनियरिंग की सर्विस के बाद ,अपने देश के लिए कुछ करने का जज्बा लिए वापस चले आये ।आज वो गरीब ,अनाथ तथा असहाय बच्चों को उनका अधिकार एवं खुशियाँ दिलाने के लिए एक संस्था चला रहे है ,जिसमे उन्होंने अपना तन, मन ,धन समर्पित कर दिया ।
                  दोस्तों अपने लिए तो सभी करते है ,पर दूसरों के लिए अपना सब कुछ त्याग कर देने वाले ऐसे लोग विरले ही मिलते है ।आज इस समारोह में ,पूरी दुनिया के कोने -कोने से बहुत ऊँचे -ऊँचे पदों पर आसीन माल्वियंस आये हुए है ।निश्चय ही उनकी उपलब्धियां हमारे तथा इस कॉलेज के लिए गौरवपूर्ण है ,पर वास्तविक रोल मॉडल तो रवि सर है ।
                मशहूर शायर दुष्यंत कुमार ने कहा है -
                                                                      आज सड़कों पर लिखें है सैकड़ों नारे न देख ,
                                                                      घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख ।
           
                                                                      एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ ,
                                                                      आज अपने बाजुओं को देख पतवारे न देख ।।     
                 रवि सर के बच्चों के द्वारा,प्रसून जोशी के मशहूर गीत  "तारें जमीं पर" किये गए प्रदर्शन ने मंत्रमुग्ध कर लिया । इन मासूम तथा भोले बच्चों के चेहरे कितनी मासूमियत से यही तो  कह रहे थे कि आप इन्हें सम्हालिये,इनका बचपन तारों की तरह बिखर ना जाये ।खैर इनको तो इनका रहनुमा मिल गया है ,पर इस तरह के कितनों ही बच्चों को हम आज प्रतिदिन अपने जीवन में देखते है ।हमारी मेस में रोटी बाँटने वाला छोटू ,बसअड्डों ,तथा रेलवे स्टेशनों पर भीख मांगते हुए,चाय ,पानी एवं  छोटी-छोटी चीजों को बेचते हुए  ये नन्हे -मुन्हे बच्चे, जिनका बचपन ही इनसे छीन लिया जाता है और इस का परिणाम ही होता है उनके पूरे जीवन की त्रासदी ।अपने बचपन की इन भयंकर परिस्थियों से ये उबर नहीं पाते और उनमें से ज्यादातर ज्यादातर अपराध ,वेश्यावृत्ति तथा ड्रग माफियाओं के चंगुल में पड़ जाते है और जीवन भर इसमें से निकल नहीं पाते है ।
                  आज हमारे बदलते भारत की एक तस्वीर यह दिखाती है की हम चाँद पर पहुँच गए ,अंतरिक्ष की सैर कर रहें हैं ।चारों तरफ भारत -निर्माण तथा इंडिया -शाइनिंग के गीत गाये जा रहें हैं ।हम वैश्विक शक्ति बनने की राह पर हैं ।हमारा सकल घरेलू उत्पाद बहुत तेजी से बढ़ा है ।हमारे बैज्ञानिक तथा इंजीनियर पूरी दुनिया का लोहा मनवा रहे हैं ।इसी तस्वीर का एक दूसरा स्याह पहलू भी है जहाँ असीमित भूख व बेरोजगारी दिखती है ।एक तरफ सपनों में चाँद को छूने की तमन्ना रखने वाला बचपन तो दूसरी तरफ सड़कों पर बिखरता तथा गलियों में दम तोड़ता बचपन ।एक तरफ लम्बी -लम्बी कारों में सारी  सुख -सुबिधाओं से युक्त बचपन तो दूसरी तरफ इन्ही कारों की शीशों के बाहर अदद एक रुपये की तलाश में घूमता बचपन ।ये तस्वीरें कौन से भारत का आइना दिखा रहीं हैं?
                 बच्चे ही किसी राष्ट्र व समाज का भविष्य होतें हैं ।इस तरह हमारे देश का बचपन जो सड़कों पर , स्टेशनों पर तथा दुकानों एवं घरेलू नौकरों के रूप में बिखर रहा है ,आने वाले कौन से भारत का निर्माण कर रहा है ?ये सवाल आज हमारे ,हमारी सरकार के तथा हर भारतीय के सामने है ।ऐसे समय में जब न सरकार ना प्रशासन और न ही राज्य इन मासूमों की मासूमियत को बचाने का जिम्मा लेना चाहते हैं ,रवि राय जैसे कुछ दीपक  आज भी इस इस घने अंधकार से भरे माहौल में टिमटिमा रहें हैं ।दोस्तों !आज हमारे बीच के कितने साथी कल के प्रतिभाशाली पेशेवर बनने जा रहें हैं ।आज हम यदि इन जैसा दिया बनकर ना भी उजाला फैला सकें तो भी हमें ये ख्याल रखना पड़ेगा की इस तरह के जो दिये जल रहें हैं ,उनकी लौ ना बुझने पाए ।

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