मंगलवार, 26 दिसंबर 2023

                                           मुक्तेश्वर यात्रा 2023 


                 आज 13 अप्रैल 2023 को मुक्तेश्वर के गोस्टॉपस हॉस्टल के कमरे में बैठ कर बाहर खिड़की से निहारते हुए मै यह लेख लिख रहा हूँ | काफी दिनों से जिस शांति की तलाश में था वह यहाँ मुक्तेश्वर में आकर पूरी हुई | वैसे तो यात्राएँ अब कमोवेश अपने जीवन का हिस्सा बन गयी हैं किन्तु  इस यात्रा में मेरा उद्द्येश्य अपनी भागदौड़ की यात्राओं को किनारे कर प्रकृति की नीरवता के मध्य अपने आप से संवाद करना था जो कि इस जगह सुकून से मै  कर सकता हूँ | 

                  खिड़की से बाहर दूर तक फैली हरी भरी घाटी की सुंदरता व खूबसूरत पहाड़ी घर मन को एक अलग सुकून प्रदान कर रहें हैं ,सब कुछ स्थिर सा महसूस हो रहा है, यहाँ गति केवल हवा के झोंकों से हिलते पेड़ों की दिखाई पड़ रही है तो वहीँ आवाज केवल कुछेक चिड़ियों एवं पेड़ों की सरसराहट की सुनाई दे रही है |  






गो स्टॉप्स हॉस्टल की खिड़की से 


                   वैसे तो मुक्तेश्वर मै पहले भी आ चुका हूँ पर परंपरागत तरीके से पॉइंट टू पॉइंट फोटो खिंचा कर चला गया था किन्तु जाते जाते यहाँ के खूबसूरत हिमालय के दृश्यों ,हरी भरी घाटियों एवं कलरव करते पक्षियों के बीच  कुछ समय व्यतीत करने की इच्छा मन में बनी रह गयी थी ,इसी धुन में कल से उत्तर प्रदेश के अपने गृह जनपद सुल्तानपुर से आज यहाँ मुक्तेश्वर की वादियों तक की स्वयं कार ड्राइव की जरा भी थकान अपने चेहरे पर महसूस नहीं हो रही थी |वैसे तो दिनभर में यहाँ कुमाऊं के पहाड़ो पर लखनऊ से कार ड्राइव करके आराम से पहुंचा जा सकता है किन्तु अपनी रफ़्तार व लखनऊ से लगभग 200 किलोमीटर और दूरी से चलने के कारण मै हरदोई शाहजहांपुर बरेली से ड्राइव करते हुए शाम तक कुमाऊँ के प्रवेश द्वार हल्द्वानी पहुँच गया फिर वहीँ एक होटल में स्टे कर आज सुबह 7:30 के आस पास हल्द्वानी से भीमताल भोवाली रामगढ होते हुए लगभग 3.5 घंटे में मुक्तेश्वर  पहुँच गया यहाँ पर गोस्टॉपस हॉस्टल में पहले से बुकिंग होने के कारण सीधे यहीं आया जहाँ पता चला कि चेक इन टाइम लगभग 2 घंटे बाद 1 बजे होगा तो इन दो घंटो के उपयोग करने के लिए हॉस्टल से लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुक्तेश्वर महादेव मंदिर व चौली की जौली देखने चला गया | 

                     मुक्तेश्वर में 2315 मीटर ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव के मंदिर की बड़ी मान्यता है ,इस मंदिर के पास खड़े होकर यहाँ की शांति को महसूस करना तथा दूर तलक फैली घाटी की खूबसूरती को निहारते रहना या फिर कहीं एक कोने में बैठकर ध्यान लगाना अपने आप में अद्भुद है ,जहाँ से जाने का मन ही नहीं करता है | मंदिर के बगल से ही घने जंगलों से होकर एक रास्ता कुछेक विचित्र चट्टानी संरचना वाली जगह पर ले जाता है इसे चौली की जाली के नाम से जाना जाता है इस जगह से  कुमाऊँ पहाड़ी के साथ हिमालय पर्वत की चोटियों के दर्शन होते हैं  ,बहुत सारी साहसिक गतिविधियां जैसे रॉक क्लाइम्बिंग ,ज़िप लाइन इत्यादि भी यहाँ की जाती है | 

                                                   मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के पास से दृश्य 

                                                                  चौली की जाली 

                 इन महीनों में पहाड़ों पर खिलने वाले खूबसूरत बुरांस (रोडोडेंड्रोन ) के फूलों का रस भी यहाँ मंदिर व चौली की जौली के आस पास खूब बिकता है ,मैंने भी इसके स्वाद का अनुभव लिया फिर पहाड़ी राजमा ,भट की दाल व पहाड़ी रायते के साथ चावल को दोपहर के भोजन में आनंद उठाया और वापस अपने हॉस्टल में आ गया ,अब लगभग 2 बज चुके थे ,कमरे की बालकनी से फैले सुन्दर पहाड़ियों ,घाटियों व बागानों पर पड़ती सूर्य की सुनहली किरणें अद्भुद व मनोरम दृश्य उत्पन्न कर रही थी | बस फिर क्या ,आराम करने का ख्याल छोड़कर यह वृत्तांत लिखने बैठ गया हूँ | 

                    तीन बजे के आस पास का समय दिन का  सबसे गर्म समय होता है किन्तु इस समय यहाँ पर चलती ठंडी हवाओं से मैंने अपने गर्म कपड़े भी निकाल लिए | पाँच बजे के आस पास चाय पीकर हॉस्टल से बाहर आकर आस पास घूमने तथा किसी सुन्दर पहाड़ी सूर्यास्त पॉइंट ढूंढने निकल गया | ऊपर सड़क के पार जाकर एक पतली सड़क एक गांव की तरफ जाती थी जिस पर थोड़ा आगे जाकर एक ऐसा पॉइंट मिला जहाँ से खूबसूरत पहाड़ी सूर्यास्त का आनंद लिया जा सकता था यहाँ पर मौजूद एक दो किशोरों से बात करते हुए यहाँ कुछ समय व्यतीत किया | चूँकि सूर्यास्त में अभी समय था तो मुख्य सड़क पर वापस आकर ऐसे ही कुछ देर इवनिंग वाक पर जाकर वापस आने का निश्चय किया और  लगभग 2 किलोमीटर चलकर यहाँ के सड़क किनारे के मकानों होटलों एवं रेस्टारेंट इत्यादि के साथ इस जगह के पर्यटन व्यवसायिकता एवं संभावनाओं पर भी विचार करता रहा | 

                   इसके बाद दूसरी सुबह 5 बजे से उठकर अपनी बालकनी में बैठकर सुबह की पहली किरण का इंतजार करने लगा और एक खूबसूरत सुबह के साथ ही मुक्तेश्वर से अपनी बैग पैक कर लगभग  सात बजे के आस पास अपनी कार से एक लॉन्ग ड्राइव पर पुनः घर की ओर निकल पड़ा |



                                                                 सूर्योदय मुक्तेश्वर 14 अप्रैल 2023 

सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

                                 रास्ता अपना हो............. 


रास्ता  अपना हो सफर अपना हो 

हर मंजिल के राही का बस यही सपना हो | 


गहरी खाइयाँ हो या हो दुर्गम पहाड़ ,

सपाट मैदान हो या विस्तीर्ण पठार ,

सश्य श्यामल सघन वन हो या मरुभूमि थार ,

चलते ही जाना तुम दूरी चाहे जितना हो | 

रास्ता अपना  .... ........ 


अपनी जीवन गाड़ी के मालिक स्वयं आप हो ,

किसी को भी चाहे जितना संताप हो ,

रह अडिग बढ़ाते रहना अपने पदचाप को ,

हर तरफ आपके पदचिन्हों की छाप हो ,

मंजिलों की मरीचिका से आगे यदि मुसाफिर बनना हो ,

रास्ता अपना हो.......... 



                                        जागेश्वर उत्तरखंड में                                             

शुक्रवार, 16 सितंबर 2022

                                                        यात्रा : मॉनसून में आस पास (भाग 1 )
                    काफी दिनों से घर और ऑफिस के डेली रूटीन से अलग हटकर मन कहीं  घूमने जाने का था ,किन्तु  छुट्टियां ना मिलने एवं काम में व्यस्तता को देखते हुए कोई योजना नहीं बन पा रही थी ,15 अगस्त भी बीत गया किन्तु हाल फिलहाल किसी लम्बी छुट्टी की सम्भावना ना देखकर हमने वीकेंड पर ही कहीं आस पास घूमने का प्लान बनाना शुरू किया | मॉनसून में आसपास के नजदीक के स्थानों की खोजबीन करके हमने मध्य प्रदेश के कुछ ऐसे स्थानों पर जाने का निर्णय लिया जहाँ बारिश के मौसम में कुछ प्राकृतिक झरने अपने पूरे  प्रवाह के साथ कुछ अलग ही दृश्य उपस्थित करते हैं ,इसके लिए हमने सबसे पहले रीवा  जिले के कुछ झरनों जैसे केवटी ,चचाई व पूर्वा जलप्रपात के भ्रमण की योजना बनाई | 

                     फिर क्या था ,आज दिनांक 19 अगस्त २०२२  दिन शुक्रवार को जन्माष्टमी के दिन सुबह लगभग 7 :00  बजे  मै और श्रीमती जी  अपनी डिजायर कार से प्रतापगढ़ से रीवा के लिए निकल पड़े , प्रतापगढ़ से प्रयागराज के बीच  एन एच 330 पर हमारी कार सरपट दौड़ने लगी ,किसी भी यात्री के लिए यद्यपि मंजिल उसकी  प्राथमिकता होती है किन्तु मुझे  हमेशा ही मंजिल से ज्यादा सफर से ही लगाव रहा है,सफर के दौरान रास्ते के प्रतिक्षण बदलते मंजर जो  अहसास दे जाते हैं वह मंजिल पर पहुँच जाने के बाद कहाँ | इस प्रकार इस यात्रा में भी रास्ते के पड़ाव    बादलों के बीच अठखेलियाँ करते सुबह के सूर्य के साथ बीतने लगे कभी सूरज बादलों के बीच सुबह की लालिमा के साथ दिख जाता तो कभी बादलों के पीछे छुपकर मौसम को और सुहावना बना देता ,सूरज की इसी लुका छुपी के बीच कब प्रयागराज पार हो गया यह हमें यमुना के नैनी पुल के ऊपर पहुँचने पर अहसास हुआ | 



                     

                     प्रयागराज से निकलने पर एन एच 30 से होकर हम तमसा नदी (टोंस नदी )पार कर चाकघाट में मध्य प्रदेश राज्य में प्रवेश कर गये , कुछ और आगे जाने पर भूदृश्यों में परिवर्तन शुरू हो गए क्योंकि  विंध्यन श्रेणी के एक हिस्से की कैमूर पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाने से हम हल्के स्लोप पर मैदानी जमीनों से ऊपर चढ़ने लगे और हमारे सामने अब सड़क से ही कैमूर रेंज की पहाड़ियाँ  दिखने लगीं |आगे जानेपर हम इन पहाड़ियों के बीच से गुजरे जहाँ एक जगह संभवतः सोहागी पहाड़ी के आसपास हम कुछ फोटो लेने के लिए रुके | 
          

 कैमूर पहाड़ियों की शुरुआत रीवा     


                       यहाँ से आगे बढ़कर हम अपने सफर के पहले पड़ाव पर देउर कोठार पहुंचे |  देउर कोठार, रीवा-इलाहाबाद मार्ग के कटरा में स्थित है। यहां मौर्य कालीन मिट्टी ईट के बने 3 बडे स्तूप और लगभग 46 पत्थरो के छोटे स्तूप बने है। अशोक युग के दौरान विंध्य क्षेत्र में धम्म  का प्रचार प्रसार हुआ और महात्मा बुद्ध  के अवशेषों को वितरित कर स्तूपों का निर्माण किया गया। यह क्षेत्र कौशाम्बी से उज्जैनी अवन्ति मार्ग तक जाने वाला दक्षिणापक्ष का व्यापारिक मार्ग था। इसी वजह से बौद्ध के अनुयायिओं ने यहां पर स्तूपों का निर्माण किया होगा। ऐसा कहा जाता है कि देउर कोठार में भरहुत से अधिक प्राचीन स्तूप है। अपनी ऐतिहासिकता के अलावा यहाँ से प्राकृतिक भूदृश्यों का विहंगम नजारा व एकांतिकता में व्यतीत किये गए कुछ छणों ने शुरुआत में ही आगे की यात्रा के लिए एक नयी ऊर्जा भर दी  |  

 


           छोटे स्तूप :देउर कोठार                       
प्राकृतिक भूदृश्य :देउर कोठार 



बड़ा स्तूप :देउर कोठार 

                देउर कोठार में लगभग 1 घंटा व्यतीत करने के बाद हम यहाँ से लगभग 35 किलोमीटर दूर केवटी गांव में महाना नदी (तमस नदी की उपनदी ) पर स्थित केवटी वॉटरफॉल देखने के लिए निकल दिएऔर 11 बजे के आसपास  केवटी जलप्रपात पहुँच गए | यह जलप्रपात लगभग 98 मीटर (322 फीट )ऊँचा है , यहाँ कुछ छण बैठकर इस जलप्रपात की गहरी खाई को महसूस करना व इसकी  गर्जना को सुनने से अलग ही सुकून एवं शांति का अनुभव मिलता है | जलप्रपात के ऊपरी हिस्से में लोग नहाते भी हैं किन्तु बरसात के मौसम में ऐसा करते हुए अत्यंत सावधान रहने की भी जरुरत है क्योंकि अचानक जलस्तर बढ़ने से किसी भी अनहोनी की आशंका बनी रहती है | 

केवटी जलप्रपात रीवा 


                                                                 महाना नदी :केवटी 

                 
                लगभग 1 घंटे केवटी जलप्रपात पर समय बिताकर हम यहाँ से सिरमौर जाने वाली सड़क के माध्यम से चचाई एवं पूर्वा जलप्रपात देखने निकल पड़े चचाई की दूरी केवटी से लगभग 21 किलोमीटर तो वहीं पूर्वा की 29 किलोमीटर थी ,सिरमौर होकर हम पहले बीहर नदी पर स्थित चचाई जलप्रपात पहुँचे ,जाने में कोई कठिनाई नहीं आयी ,यहाँ तक हमारी लो फ्लोर डिजायर भी आराम से चचाई तक पहुँच गयी | यद्यपि चचाई को देखकर मन थोड़ा व्यथित हुआ क्योंकि  कभी भारत का नियाग्रा कहा जाने वाला  130 मीटर ऊँचा यह जलप्रपात मानसून के समय भी लगभग सूखा हुआ पाया गया जिसका कारण बीहर नदी पर इस जलप्रपात से कुछ पहले बनाया गया बाँध था ,लोगों द्वारा पूछने पर यह बात पता चली कि बाँध के जलाशय में अधिक पानी होने या बाढ़ आने पर ही बाँध से पानी छोड़े जाने पर यह जलप्रपात अपने पुराने सौंदर्य की कुछ झलक दे पाता है अन्यथा यह स्थिति यहाँ सदैव विद्यमान रहती है | फिर भी हम इस जलप्रपात के आसपास फैले जंगलों ,खाइयों व दूर होते चचाई नदी व तमसा के संगम को देखकर इसकी पुरानी कीर्ति का काफी कुछ अनुभव कर सके ,हम यह भी महसूस कर सके कि क्यों यहाँ के सौंदर्य को देखकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री मंत्रमुग्ध रह गये थे तथा क्यों यह जलप्रपात कई साहित्यकारों व कवियों की रचनात्मकता का साक्षी रहा है ?चचाई के नैसर्गिक सौंदर्य को निहारकर ही सुप्रसिद्ध कवि एवं लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा की तूलिका गा उठी थी-

                                                     ओ देख खोल दृग यह प्रपात
                                                      य पतन दृष्टि का शुभ हास।
                                                   कवि जड़ वर्षा तक सिखलायेगा,
                                                     युग को चेतन का रम्य हम्सस।

चचाई जलप्रपात 

                                                                    
बीहर व तमसा नदी का संगम                                                                               
                      इसके बाद हम निकले यहाँ से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पूर्वा जलप्रपात को देखने ,रास्ते में तमस नदी के पुल से गुजरते हुए  जल की विशाल मात्रा देखकर इस प्रपात की सुंदरता का अहसास हुआ ,थोड़ा और आगे जाकर जब हम मुख्य सड़क को छोड़कर जलप्रपात के तरफ की कच्ची सड़क पर मुड़े तो वहीं से सामने विशाल पार्किंग प्रांगण में गाड़ियों व लोंगो की भीड़ ,जलप्रपात की संभावित जगह से ऊपर उठती धुआं की तरह जल फुहारें तथा इसका भयंकर गर्जन यहाँ आने की वजह को स्वमेव ही प्रतिफलित कर रहा था ,गाड़ी पार्क कर जैसे तैसे हम साइट सीन की जगह पहुंचे तो यहाँ का नजारा देख कर मन कुछ देर विस्मृत सा रह गया ,सैकड़ों मीटर दूर तक उठती व पहुँचती जल फुहारे मुख्य साइटसीन पर 5 मिनट खड़े होने पर बारिश के जैसे भिगा दे रहीं थी तथा प्रपात की गर्जना मन में सिहरन पैदा कर रही थी | बस फिर क्या था हम कुछ देर तक अपलक इस प्रपात को निहारते हुए इसके अद्भुद सौंदर्य में खोये रहे ,हमे इस बात का अहसास तब हुआ जब हम लगभग पूरी तरह भीग चुके थे | इसके बाद हम खाई की रेलिंग के साथ चलते हुए काफी आगे तक नदी की वैली देखने आगे की तरफ गए किन्तु जलफुहारें काफी आगे तक हमारे साथ तक होने के कारण  पूरी तरह भीग जाने के डर से हम प्रपात के सामने से हटकर थोड़ा साइड से चलकर प्रपात के नजदीक के जंगलों के आसपास से इसकी ख़ूबसूरती व आवाज को महसूस करते रहे ,आज सुबह शुरू हुए सफर का यह सबसे खूबसूरत पड़ाव था जहाँ हम निः शब्द होकर घण्टों समय बिताया ,लगभग 3 बज चुके थे जब हमने यहाँ से लगभग 260 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खूबसूरत जबलपुर के लिए निकल पड़े | 


पूर्वा  जलप्रपात 





बुधवार, 5 अप्रैल 2017

         " इंसान अगले एक हज़ार साल तक ज़िंदा नहीं रह पायेगा "

                ❛विनाश ❲ नष्ट होना ❳ नियम है जबकि जीवित रहना ❲उत्तरजीविता ❳अपवाद ❜
                                                                                                                           -कार्ल सैगोन (अमेरिकी                                                                                                                भौतिकशास्त्री व अंतरिक्ष विज्ञानी )
                 मानव एक ऐसा प्राणी है जिसने प्रकृति के संरचनात्मक व क्रियात्मक तत्वों की पहचान करके उसके नियमों की व्याख्या की ,अपनी बुद्धि व विवेक का उपयोग करते हुए उसने इन नियमों की मदद से प्रकृति के संसाधनों का उपयोग किया और एक ऐसी आधुनिक सभ्यता का निर्माण किया जहाँ आज अन्य जीव-जंतु व प्राकृतिक संसाधन मानवीय इच्छा व आवश्यकता के साधन मात्र प्रतीत होतें हैं । बाधाओं का डटकर मुकाबला करते हुए तथा परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाते हुए आत्मविश्वास से भरा मानव आज चाँद तक पहुँच गया है और उसके आगे के ब्रम्हाण्डीय विस्तार को इस आशा व विश्वास से देख रहा है कि एक दिन वहां भी इन्सानियत का राज होगा ।
                  
              यद्यपि  विकास के इस दौर में इंसान के विनाश की बात को कुछ लोग गम्भीरता से भले ना लें किन्तु  उत्थान के बाद पतन व पतन के बाद उत्थान ही प्रकृति का  सार्वभौम नियम है,इस बारे में समय सीमा ,मात्रा व तरीके को लेकर विवाद हो सकता है पर इसे झुठलाया नहीं जा सकता। हाल ही में 'पृथ्वी पर इन्सान के भविष्य' के विषय पर चर्चा करते हुए सदी के महानतम वैज्ञानिकों में से एक स्टीफन्स हॉकिंस ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि "यदि इन्सान को अपना अस्तित्व एक हज़ार वर्षों से अधिक बनाये रखना है तो उसे अन्य दूसरे ग्रहों को अपना उपनिवेश बनाना होगा तथा वहां इंसानी बस्तियाँ बनानी होगीं ,हमारी नाजुक पृथ्वी पर इन्सान का अस्तित्व अब एक हज़ार से अधिक वर्षों तक संभव नहीं है ।" स्टीफन्स हॉकिन्स के इस कथन से अनेक सवाल उठने लगे कि क्या वाकई में मानव एक हज़ार वर्ष से अधिक जीवित नहीं रह पायेगा ?क्या एक महान वैज्ञानिक द्वारा इस तरह का कथन मानव की  वैज्ञानिक प्रगति व सभ्यताई विकास को कम करके आंकना है ?क्या आधुनिक मानव अपने मातृ ग्रह पृथ्वी को बचाये रख पाने में सक्षम नहीं होगा ?ऐसे तमाम सवाल एक बार पुनः विद्वानों व वैज्ञानिकों के मध्य चर्चा का प्रमुख विषय हो गए । 

                  हालांकि इन्सान के भविष्य की समाप्ति की बात कोई पहली बार नहीं की गयी है ,वैज्ञानिकों ,मानव विज्ञानियों तथा पर्यावरणविदों के मध्य ऐसी बहसें बहुत पहले से ही होती रही हैं । साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में तथा कलाकारों ने अपनी कलाओं जैसे सिनेमा में इन्सान के अस्तित्व की समाप्ति की ओर संकेत किया है । एलन वीज़मैन की किताब "द वर्ल्ड विदआउट अस ", जॉन लेसली की किताब "द इंड ऑफ़ द वर्ल्ड "
व सिनेमा में "द ओमेगा मैन "(1971) से लेकर "द एक्सटिंक्शन "(2015) जैसी फिल्मे ऐसी सम्भावनाओं को अभिव्यक्त करती रहीं हैं । इतिहासकारों ने भी पूर्वकाल में विकसित मानव सभ्यताओं के अंत के साक्ष्य प्रस्तुत कियें हैं तो वहीं धार्मिक मान्यताओं व दार्शनिक सिद्धान्तों में भी "क़यामत के दिन ,लॉस्ट जजमेन्ट या महाप्रलय " जैसी अवधारणाएँ इन्सान के अंत से जुड़ी हुई हैं । 

                    अब अगर हम मानव जीवन की समाप्ति की बात करें तो हमारी धरती की वास्तविकताओं के मद्देनजर इसे केवल एक कपोल कल्पना ही नहीं माना जा सकता । मानव की स्वार्थपरकता व आक्रामकता ने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी हैं कि अगले एक हज़ार साल के अंदर इंसान के जिन्दा न रह पाने की बात भी आज आश्चर्यजनक नहीं लगती । स्टीफन्स हॉकिन्स के अनुसार "गुफाकाल से लेकर वर्तमान सभ्यताई युग तक मानव की आक्रामकता व स्वार्थपरकता एक सहज प्रवृत्ति के रूप में विद्यमान रही है ,पहले यह उसके जीवित रहने या विकास करने की आवश्यकता के रूप में थी जैसे दूसरों पर हमला करके उसके भोजन व औरतों पर कब्ज़ा कर लेना ,जबकि आज यह न केवल पर्यावरण विनाश व संसाधन क्षरण  बल्कि नाभिकीय युद्ध जैसी सम्भावना को भी उत्पन्न कर रही है ।"

                       ध्यातव्य है कि पहले मानवीय  प्रवृत्तियों व क्रियाकलापों का प्रभाव किसी विशिष्ट क्षेत्र ,व्यक्ति या समूह तक सीमित हुआ करता था किन्तु आज इनके प्रभाव का दायरा वैश्विक ही नहीं बल्कि खगोलीय या आकाशीय हो गया है । जनाधिक्य ,पर्यावरण विनाश ,जलवायु परिवर्तन व ओजोन परत में ह्रास इत्यादि ऐसे ही कुछ प्रभाव हैं  जिनके प्रबंधन पर ही इन्सान का भविष्य टिका नजर आता है । 

                        हालांकि कुछ विद्वान जलवायु परिवर्तन को प्रमुख चुनौती स्वीकार करतें हैं किन्तु  वे इसे प्रत्यक्षतः  मानव अस्तित्व के लिए खतरा मानने से इन्कार करते हैं । कैलगरी विश्वविद्यालय (कनाडा )के प्रोफेसर शान मार्शल के अनुसार "जलवायु परिवर्तन से होने वाले समुद्रतटीय सीमा में बदलाव ,रोगों के फैलने या मौसम चक्र में होने वाले परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाला असंतोष या सामाजिक संघर्ष इन्सान के अस्तित्व की समाप्ति का एक प्रबल कारक हो सकता है विशेषकर ऐसे दौर में जब सामूहिक विनाश के हथियारों के जखीरे प्रत्येक राष्ट्र के पास मौजूद हों ।"

                         विश्वप्रसिद्ध विद्वान नॉम चोम्स्की मानवीय स्वार्थ व आक्रामकता को वर्तमान राष्ट्रराज्यों की प्रभुत्व व एकाधिकारवादी नीतियों से जोड़ते है उनके अनुसार "सरकारों द्वारा सुरक्षा के नाम पर हथियारों के जखीरे को बढ़ाते जाना तथा इस पर होने वाली सार्वजनिक बहसों को सुरक्षा के नाम पर दबाते जाना अपने स्वार्थसिद्धि व प्रभुत्व के विस्तार की कोशिश है जो इंसान को सामूहिक आत्मविनाश की ओर ले जाता है । "
ध्यातव्य है कि आज भी पृथ्वी पर कम से काम 22600 नाभिकीय हथियार है जिसमें से कम से कम 7770 क्रियाशील हैं, इसी के साथ  विश्व राजनीति में राष्ट्रों के मध्य व्याप्त संघर्ष ,आतंकवाद का वैश्विक स्वरुप तथा परमाणु अप्रसार सन्धि पर असहमति जैसे मुद्दे भी हैं जो कभी भी विश्व को नाभिकीय युद्ध के मुहाने पर ले जाने में सक्षम हैं ,अतः 1000 वर्ष के अंदर इन्सान के ज़िन्दा न रह पाने का विचार महज कोरी कल्पना नहीं हो सकता। शीतयुद्ध काल में घटित हुआ क्यूबा मिसाइल संकट ऐसी ही संभावनाओं का एक नमूना मात्र है ,विद्वानों के अनुसार भविष्य में ऐसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ेगी । 

                         अपनी पुस्तक "आवर फाइनल ऑवर "में सर मार्टिन रीस विनियमन व सावधानी के बिना वैज्ञानिक महाप्रयोगों तथा नित  नई तकनीकों के अनुप्रयोगों को इन्सानी वजूद के लिये खतरा माना है ,उदाहरण के तौर पर सर्न द्वारा किये जाने वाले लार्ज हैड्रोन कोलाइडर (एल एच सी ) जैसे प्रयोग में कल अगर कुछ असामान्य घटित होने लगे या किसी तापनाभिकीय प्रयोग के मद्देनजर पृथ्वी के वायुमण्डल व जलमण्डल की हाइड्रोजन संलयित होने लगे या अन्य कोई ऐसी घटना जो मानवीय क्षमता व ज्ञान के दायरे से बाहर हो । 


                          इसके अतिरिक्त अगले 1000 वर्ष के अन्दर इन्सान के ज़िन्दा ना रह पाने के संभावित कारणों में वैज्ञानिक  किसी आकाशीय या अंतरग्रहीय घटना की आशंका को भी स्वीकृति देतें हैं ,जैसे किसी उल्कापिण्ड या क्षुद्रग्रह का पृथ्वी से टक्कर या किसी तारे से असमान्य मात्रा में खतरनाक विद्युत् चुम्बकीय किरणों (जैसे गामा विकिरण ) का उत्सर्जन । स्टीफन्स हॉकिन्स इससे भी एक कदम आगे जाकर ब्रह्माण्ड के दूसरे ग्रह के प्राणियों (एलियंस ) के आक्रमण को भी इन्सान के अंत के सम्भावित कारणों के रूप में देखते हैं । हॉलीवुड की कई मशहूर फिल्में जैसे द डीप इम्पैक्ट (1998 ),द इंडिपेंडेन्स डे (1996)द इन्वेसन इत्यादि ऐसी ही आकाशीय या अंतरग्रहीय घटनाओँ को प्रदर्शित करती हैं । 

                         कुछ अन्य कारक जो एक हज़ार वर्ष के अंदर मानव के विनाश की क्षमता रखते हैँ उसमें जैविक आनुवांशिक संक्रमण के कारण इंसानी जीन में बदलाव से किसी विशेष तरह के जीव की उत्पत्ति या किसी विशेष क्षमता वाले विषाणुओं का संक्रमण  अथवा मशीनों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का विकास इत्यादि प्रमुख हैं । कुछ वैज्ञानिक भविष्य में शीतयुग की संकल्पना को भी मानव अस्तित्व के समक्ष चुनौती मानते हैं । 


                         तमाम मौजूद कारकों व संभावनाओं के बावजूद ज्यादातर विद्वान व वैज्ञानिक इन्सान के भविष्य को अगले 1000 वर्षों तक सीमित करने के पक्ष में नहीं हैं ,यहाँ तक कि स्टीफन्स हॉकिन्स भी धरती तक सीमित रहने पर ही मानव प्रजाति के नष्ट होने की भविष्यवाणी करते हैं किन्तु उनका यह विश्वास है कि आने वाले एक हज़ार वर्षों के अन्दर इन्सान एक अन्तरग्रहीय प्राणी होगा । एक तरह से देखें तो स्टीफन्स हॉकिन्स मानव के अंतरिक्ष कार्यक्रम में तेजी लाने की ओर इशारा कर रहें हैं । दुनियां के पहले निजी अंतरिक्ष एजेंसी स्पेस एक्स के संस्थापक इलोन मस्क भी कुछ इसी प्रकार की बात करते हुए कहते हैं कि ❝मानवता का भविष्य दो दिशाओं में विभाजित हो रहा है ,या तो यह बहुग्रहीय होगा या फिर पृथ्वी की ओर सिमटता जायेगा जिसका निश्चित परिणाम विनाश होगा । ❞    

                          इसी प्रकार वैश्विक तापन व जलवायु परिवर्तन के संभावित परिणामों को लेकर भी विवाद है ,हालांकि ज्यादातर विद्वान इसे एक अवश्यम्भावी घटना मानते हैं किन्तु इसके परिणाओं से इन्सान का अंत हो जायेगा ऐसा मानने वाले अत्यल्प हैं । ध्यातव्य है कि जुरासिक व क्रिटेशियस युगों में पृथ्वी का औसत तापमान 25 डिग्री सेल्सियस होने के वावजूद पृथ्वी पर जीवन था तो क्या दुनिया का सबसे अनुकूलनशील व विवेकशील प्राणी मानव 18 -20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अपने आपको अनुकूलित नहीं कर पायेगा ?यह कहना सही नहीं प्रतीत होता । यहाँ तक आईपीसीसी (इन्टर गवर्नमेण्ट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ) भी जलवायु परिवर्तन या तापमान वृद्धि को इन्सान के विनाश का कारण मानने को तैयार नहीं है । अधिकांश वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन बहुतों के मौत का कारण बन सकता है किन्तु सभी के नहीं । यह हमारी जन्तु पारिस्थितिकी में बदलाव ला सकती  है ,अधिकांश बर्फ को पिघला सकती है ,समुद्र को अम्लीय बना सकती है या फसल उत्पादकता व जल की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है । वास्तव में हम लोग एक ऐसा प्रयोग कर रहें हैं जिसके परिणाम अनिश्चित हैं । 

                           संभावित नाभिकीय युद्ध या परमाणु त्रासदी के प्रति भी ज्यादातर लोग आशावादी रवैया अपनाते हैं उनके अनुसार 'यदि कूटनीतिक या वैचारिक प्रक्रिया भी इस प्रकार के हादसों को न रोक सकीं तो भी सम्पूर्ण नाभिकीय युद्ध इंसान के अस्तित्व को निकट भविष्य में समाप्त नहीं कर सकता । कुछ लोग धरती के अन्दर सुरंग में या किसी यान में बैठकर आकाश में उड़ते हुए या फिर धरती पर ही किसी बचे हुए कोने में सिमटे हुए इससे जरूर बच निकलेंगें और अपनी अनुकूलन क्षमता ,जिजीविषा व योग्यता के बल पर पुनः मानव सभ्यता को स्थापित करने में सफल होंगें । 

                           इसी प्रकार किसी खगोलीय पिण्ड के निकट भविष्य (1000 वर्षों में ) में पृथ्वी से टकराने की संभावना को भी वैज्ञानिक ख़ारिज करते हैं विशेषकर यह देखते हुए कि पिछले लाखों करोड़ों वर्षों में पृथ्वी या किसी अन्य पडोसी ग्रह पर इस प्रकार के विनाशकारी टक्करों के साक्ष्य प्राप्त नहीं होते हैं । कुछ अन्य कारण जिनसे अगले 1000 वर्षों में इंसान के अंत की संभावना प्रकट की गयी है वो या तो पूरी तरह काल्पनिक ही प्रतीत होतें हैं या फिर मानवीय क्षमता के दायरे में मानकर वैज्ञानिकों व बुद्धिजीवियों द्वारा ख़ारिज कर दिये जाते हैं । 


                          उपरोक्त  विश्लेषण से यह तो स्पष्ट है कि इन्सान के अस्तित्व के समाप्ति या उत्तरजीविता को किसी भी समयसीमा से बांधकर देखना सही नहीं है । कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इमैनुअल विन्सेट इस बारे में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए कहते हैं कि ❝यद्यपि भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता फिर भी वैज्ञानिक व बौद्धिक जगत द्वारा मानव समाज को भविष्य के खतरे के प्रति आगाह करना जरुरी है । हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि एक समाज के रूप में हम इसे किस प्रकार प्रबंधित करते हैं । ❞इसी प्रकार एमआईटी के निदेशक जॉन स्टरमैन कुछ ज्यादा ही आशान्वित होकर कहते हैं कि ❝इन्सान के ज़िन्दा रहने या न रहने का  अनुमान लगाना मूर्खतापूर्ण है ,वास्तव में इंसान का भविष्य अनुमान या कयास से नहीं बल्कि मानव इच्छा से ही निर्धारित होगा ,किसी अन्य ग्रह पर जाकर रहने की बात करने वाले लोग विज्ञान गल्प पर आधारित अमेरिकी सीरियल स्टार ट्रेक  ज्यादा देख रहे हैं,इन्सान यहीं रहेगा और सतत ढंग से रहना सीख जायेगा । ❞
   


                           निश्चित रूप से इन्सान से अधिक अनुकूलनशील और सामर्थ्यवान प्राणी नहीं है जो आर्कटिक से लेकर कालाहारी तक पाषाणयुगीन प्रौद्योगिकी के दम पर जिन्दा रह सके ,जबकि इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि नवपाषाणकाल के अंत तक मानव ने लगभग सम्पूर्ण पृथ्वी का औपनिवेशिकरण कर लिया था । किसी भी वस्तु को खाने की क्षमता के अलावा हमारे पास विचार करने ,याद रखने तथा सहानुभूति या संवेदना प्रगट करने की क्षमता है । हमारा जैविक हार्डवेयर अनेक प्रकार के सांस्कृतिक सॉफ्टवेयर को चलाने में सक्षम है । समय के साथ विकसित हुई अनेक मानव संस्कृतियों में से किसी भी परम्परा के साथ चल सकने में हम सक्षम हैं ,यदि हमारी वर्तमान पीढ़ी कोई बड़ी गलती भी कर रही है तो अपनी विविधीकृत मानसिक योग्यता व मानवीय दक्षता के बल पर हम इन सांस्कृतिक तत्वों में से उपयुक्त को अपना भी सकतें हैं तथा आवश्यकतानुसार नये तत्वों की खोज भी कर सकते हैं । अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में बिभिन्न उपलब्ध विकल्पों में से हम ऐसी पद्धतियों व तकनीकों को चुनने में सक्षम हैं जो अधिकतम सामर्थ्यवान तथा पृथ्वी के लिए न्यूनतम विनाशकारी हो ।  निष्कर्षतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अगले एक हज़ार सालों तक ही नहीं बल्कि इन्सान  तब तक ज़िन्दा रह सकता है जब तक कि हमारे सौरमण्डल के सूर्य की वर्तमान चमक विद्यमान रहेगी । 
                                                                           नाम -सच्चिदानन्द तिवारी 
                                                                           पता -ग्राम तिवारीपुर ,पोस्ट-बेलाही ,तहसील -लंभुआ 
                                                                           जिला -सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश)-222302 
                                                                           मोबाइल नम्बर -8130272156 
                                                                           ईमेल -sachche91@yahoo.com 
                                                                             



                        
                 
                                                                                                                                         

रविवार, 21 अप्रैल 2013

ये सफर चलता .........



ये सफर चलता रहेगा ,मोड़ आयेंगे नये ,
राह के राही डटा रह ,मेघ छाएंगे नए । 
जलजलों का खौफ या हो गर्म सेहरा की तपिश ,
पाँव को आगे बढ़ाना ,सहर आयेंगे नए । 

काफिले हर मोड़ वीथी पर सदा मिलते रहेंगे ,
हर तरह के साथियों के साथ हम चलते रहेंगे । 
क्या हुआ जो साथ छूटे ,डोर रिश्तों की न टूटे ,
पार पैमाने को कर हम ,छाप छोड़ेंगे नए  । । 
               
                            -  सच्चिदानन्द तिवारी 

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

नववर्ष आगमन मंगलमय हो .........

आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !!

               दोस्तों !जिन्दगी के रहगुजर पर चलते हुए आज हम फिर से एक पड़ाव को पार कर रहें हैं ।जहाँ बीता हुआ वर्ष कुछ खट्टी ,कुछ मीठी तथा कुछ कड़वी यादों को हमारे जेहन में वसाकर हम सभी को अलविदा कह रहा है ,वहीँ एक नया साल कुछ पीड़ा को सजोए हुए ,तथा कुछ उमंग व उत्साह को अपने में समेटे हुए हमारे स्वागत की तैयारी कर रहा है ।

               बीता साल जहाँ हमारे समाज में व्याप्त भयानक नृशंसता ,पाश्विकता व अमानवीयता का आइना हम सभी को जाते-जाते दिखा गया ,वहीं बदलाव की आस में सभी विपरीत परिस्थितियों से सड़कों पर जूझते देश के लाखों युवाओं के माध्यम से यह पैगाम भी दे गया कि आने वाले नये भारत की तस्वीर इनके द्वारा गढ़ी जायेगी ।बदलाव की एक लहर जो हमारे समाज ,हमारे देश ने पिछले सालों में महसूस की थी ,2012 में भी उसकी प्रवृत्ति सतत बनी रही । ऐसी उम्मीद भी है कि आने वाला यह नववर्ष हमारे ,हमारे समाज तथा हमारे राष्ट्र में हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों को एक नयी दिशा व गति प्रदान करेगा और हम सभी इस बदलाव का एक हिस्सा होंगे ।दोस्तों !नए साल की यह ख़ुशी दिखावा मात्र नहीं होनी चाहिये ,वल्कि ये ख़ुशी होनी चाहिये एक नये उम्मीद की ,एक नये उत्साह की तथा नवपरिवर्तन के रँग में रँगे इन युवा चेहरों के सपनों की ।

                आज हमें यह प्रण करना चाहिये कि जो भी उत्तरदायित्व हमें हमारे समाज से ,हमारे देश से हमें मिलता है उसका निर्वहन हम पूर्ण निष्ठा तथा ईमानदारी से करेंगें ,  हमारे स्वतंत्रता आन्दोलन के क्रान्तिकारियों तथा हमारे जननेताओं नें जिस भारत का सपना देखा था उसे पाने की दिशा में हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे ।दोस्तों ! कल किसी ने नहीं देखा है ,हाँ सुनहरे कल के निर्माण के लिए हमारे पास वर्तमान है ।और आज यदि हम अपने वर्तमान के निर्माण से विमुख होंगे तो आने वाला कल हमें कभी माफ़ नहीं करेगा ।अतः अपने सुनहरे कल के सपनों को सजोकर आज और अभी से हमें इस दिशा में कदम बढ़ाने चाहिये ।यह समय बैठने का नहीं वरन अपने राष्ट्र ,अपने समाज व अपने लिये कुछ करने का है ।इस दिशा में जिन लाखों युवाओं ने जो आवाज आज बुलंद की है ,यह आवाज और तेज होनी चाहिये ।हम पर ,आप पर व हम सभी पर यह दायित्व है कि समय के साथ ,समाज की हर एक बुराई पर एवं सत्ता के हर एक दंभ भरे व्यवहार पर यह प्रतिध्वनि सतत गूंजनी चाहिये ।और अंत में मै अपनी कुछ पुरानी लाइनें पुनः दुहराना चाहूँगा -------
                   इस नये सहर की वेला पर ,
                   करिये नव सूरज को प्रणाम ।
                   विकरित नव रश्मि जहाँ पँहुचे ,
                   आह्वान करो हर नगर ग्राम ।
                   जगत गुरू के आसन पर ,
                   जनतंत्र के ये है जनभक्षक ।
                   फूंकों नवबिगुल है क्रान्ति नयी ,
                    भारत माँ के हो तुम रक्षक ।।

                                                                     (सच्चिदानन्द तिवारी )

रविवार, 23 दिसंबर 2012

आखिर कब बदलेगा तंत्र ....

           
            आज दिल्ली की सड़कों पर एक बार फिर सरकार पर प्रदर्शनकारियों का गुस्सा फूट पड़ा ।हजारों लोगों के समूह ने जनपथ ,राष्ट्रपतिभवन ,मंत्रियों तथा सोनिया गाँधी के आवास का घेराव किया ,और दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने तथा भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के सन्दर्भ में सरकार से जवाब माँगा ।हमारे एक मंत्री का जवाब भी आ गया कि भावनाओं में बहकर तंत्र नहीं चलता ,यह एक प्रक्रिया के तहत चलता है ।बेशक मंत्री जी का यह कहना बिलकुल सही है कि दोषियों को सजा हमारे सांविधिनिक व्यवस्था के अन्तर्गत ,न्यायालयों द्वारा प्रदान की जाएगी ,परन्तु जिस तंत्र की दुहाई हमारे मंत्री जी दे रहें है ,क्यों उस में  इसी तरह से हजारों बलात्कार के मामले लंबित पड़े है ?और क्यों आधे से अधिक मामलों में दोषी बिना सजा पाए छूट जाते हैं ?बलात्कार की यह कोई नई घटना नहीं है ,आये दिन हमारे समाज में ऐसी वहशियाना घटनायें घटती रहती है ।तब इनको क्यों नहीं ये महसूस हुआ कि हमें तन्त्र में सुधार करने की जरुरत है ? यदि पहले से ही हमारी व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होती और इस प्रकार के घृणित कृत्यों के प्रत्येक दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी गयी होती तो क्या आज इंसानियत को शर्मसार करने वाली तथा हैवानियत की सीमा लांघती ऐसी ऐसी घटनाएँ हमारे समाज में घटित होती ?
             
                 लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं ,किन्तु आज जनता इन जनप्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व करती नजर आती है ।किसी भी कानून की मांग तथा कार्यवाही को लेकर सत्ता के मद में चूर हमारे राजनेताओं को के कानों में तब तक जूं नहीं रेंगती ,जब तक इन्हें अपने कुर्सी के खतरे की घंटी नहीं सुनाई देती है ।आखिर क्यों हमने इन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा है ?केवल इसी लिए कि ये अपने दस जनपथ और बीस जनपथ स्थित राजमहल में सोते रहें और बाहर जनता अपने न्याय ,सुरक्षा तथा अधिकारों के लिए चिल्लाती रहे ।नहीं साहब !ये भीड़ आज ये चीख-चीख कर कह रही है कि बस बहुत हो चुका ,आज चाहे हम हों या हमारे शासन तंत्र के नुमाइन्दे हों अथवा वीभत्स मानसिकता लेकर हमारे समाज में ही पले-बढ़े ऐसे कृत्यों को अंजाम देने वाले आसामाजिक तत्व , सभी को बदलना होगा ।इनमे से जो भी स्वेच्छा से इस बदलाव को नहीं अपना सकता तो उसे मजबूर करना हम सभी की तथा इस समाज की जिम्मेदारी होगी ,फिर भी ना बदलने पर पर इस सामाजिक दायरे से उसके निष्कासन की जिम्मेदारी भी हमारी ही होगी ।मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की ये लाइनें आज सटीक ही बैठती है ----
                                         
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।