काफी दिनों से घर और ऑफिस के डेली रूटीन से अलग हटकर मन कहीं घूमने जाने का था ,किन्तु छुट्टियां ना मिलने एवं काम में व्यस्तता को देखते हुए कोई योजना नहीं बन पा रही थी ,15 अगस्त भी बीत गया किन्तु हाल फिलहाल किसी लम्बी छुट्टी की सम्भावना ना देखकर हमने वीकेंड पर ही कहीं आस पास घूमने का प्लान बनाना शुरू किया | मॉनसून में आसपास के नजदीक के स्थानों की खोजबीन करके हमने मध्य प्रदेश के कुछ ऐसे स्थानों पर जाने का निर्णय लिया जहाँ बारिश के मौसम में कुछ प्राकृतिक झरने अपने पूरे प्रवाह के साथ कुछ अलग ही दृश्य उपस्थित करते हैं ,इसके लिए हमने सबसे पहले रीवा जिले के कुछ झरनों जैसे केवटी ,चचाई व पूर्वा जलप्रपात के भ्रमण की योजना बनाई |
फिर क्या था ,आज दिनांक 19 अगस्त २०२२ दिन शुक्रवार को जन्माष्टमी के दिन सुबह लगभग 7 :00 बजे मै और श्रीमती जी अपनी डिजायर कार से प्रतापगढ़ से रीवा के लिए निकल पड़े , प्रतापगढ़ से प्रयागराज के बीच एन एच 330 पर हमारी कार सरपट दौड़ने लगी ,किसी भी यात्री के लिए यद्यपि मंजिल उसकी प्राथमिकता होती है किन्तु मुझे हमेशा ही मंजिल से ज्यादा सफर से ही लगाव रहा है,सफर के दौरान रास्ते के प्रतिक्षण बदलते मंजर जो अहसास दे जाते हैं वह मंजिल पर पहुँच जाने के बाद कहाँ | इस प्रकार इस यात्रा में भी रास्ते के पड़ाव बादलों के बीच अठखेलियाँ करते सुबह के सूर्य के साथ बीतने लगे कभी सूरज बादलों के बीच सुबह की लालिमा के साथ दिख जाता तो कभी बादलों के पीछे छुपकर मौसम को और सुहावना बना देता ,सूरज की इसी लुका छुपी के बीच कब प्रयागराज पार हो गया यह हमें यमुना के नैनी पुल के ऊपर पहुँचने पर अहसास हुआ |
प्रयागराज से निकलने पर एन एच 30 से होकर हम तमसा नदी (टोंस नदी )पार कर चाकघाट में मध्य प्रदेश राज्य में प्रवेश कर गये , कुछ और आगे जाने पर भूदृश्यों में परिवर्तन शुरू हो गए क्योंकि विंध्यन श्रेणी के एक हिस्से की कैमूर पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाने से हम हल्के स्लोप पर मैदानी जमीनों से ऊपर चढ़ने लगे और हमारे सामने अब सड़क से ही कैमूर रेंज की पहाड़ियाँ दिखने लगीं |आगे जानेपर हम इन पहाड़ियों के बीच से गुजरे जहाँ एक जगह संभवतः सोहागी पहाड़ी के आसपास हम कुछ फोटो लेने के लिए रुके |
कैमूर पहाड़ियों की शुरुआत रीवा |
यहाँ से आगे बढ़कर हम अपने सफर के पहले पड़ाव पर देउर कोठार पहुंचे | देउर कोठार, रीवा-इलाहाबाद मार्ग के कटरा में स्थित है। यहां मौर्य कालीन मिट्टी ईट के बने 3 बडे स्तूप और लगभग 46 पत्थरो के छोटे स्तूप बने है। अशोक युग के दौरान विंध्य क्षेत्र में धम्म का प्रचार प्रसार हुआ और महात्मा बुद्ध के अवशेषों को वितरित कर स्तूपों का निर्माण किया गया। यह क्षेत्र कौशाम्बी से उज्जैनी अवन्ति मार्ग तक जाने वाला दक्षिणापक्ष का व्यापारिक मार्ग था। इसी वजह से बौद्ध के अनुयायिओं ने यहां पर स्तूपों का निर्माण किया होगा। ऐसा कहा जाता है कि देउर कोठार में भरहुत से अधिक प्राचीन स्तूप है। अपनी ऐतिहासिकता के अलावा यहाँ से प्राकृतिक भूदृश्यों का विहंगम नजारा व एकांतिकता में व्यतीत किये गए कुछ छणों ने शुरुआत में ही आगे की यात्रा के लिए एक नयी ऊर्जा भर दी |
देउर कोठार में लगभग 1 घंटा व्यतीत करने के बाद हम यहाँ से लगभग 35 किलोमीटर दूर केवटी गांव में महाना नदी (तमस नदी की उपनदी ) पर स्थित केवटी वॉटरफॉल देखने के लिए निकल दिएऔर 11 बजे के आसपास केवटी जलप्रपात पहुँच गए | यह जलप्रपात लगभग 98 मीटर (322 फीट )ऊँचा है , यहाँ कुछ छण बैठकर इस जलप्रपात की गहरी खाई को महसूस करना व इसकी गर्जना को सुनने से अलग ही सुकून एवं शांति का अनुभव मिलता है | जलप्रपात के ऊपरी हिस्से में लोग नहाते भी हैं किन्तु बरसात के मौसम में ऐसा करते हुए अत्यंत सावधान रहने की भी जरुरत है क्योंकि अचानक जलस्तर बढ़ने से किसी भी अनहोनी की आशंका बनी रहती है |
केवटी जलप्रपात रीवा
महाना नदी :केवटी
लगभग 1 घंटे केवटी जलप्रपात पर समय बिताकर हम यहाँ से सिरमौर जाने वाली सड़क के माध्यम से चचाई एवं पूर्वा जलप्रपात देखने निकल पड़े चचाई की दूरी केवटी से लगभग 21 किलोमीटर तो वहीं पूर्वा की 29 किलोमीटर थी ,सिरमौर होकर हम पहले बीहर नदी पर स्थित चचाई जलप्रपात पहुँचे ,जाने में कोई कठिनाई नहीं आयी ,यहाँ तक हमारी लो फ्लोर डिजायर भी आराम से चचाई तक पहुँच गयी | यद्यपि चचाई को देखकर मन थोड़ा व्यथित हुआ क्योंकि कभी भारत का नियाग्रा कहा जाने वाला 130 मीटर ऊँचा यह जलप्रपात मानसून के समय भी लगभग सूखा हुआ पाया गया जिसका कारण बीहर नदी पर इस जलप्रपात से कुछ पहले बनाया गया बाँध था ,लोगों द्वारा पूछने पर यह बात पता चली कि बाँध के जलाशय में अधिक पानी होने या बाढ़ आने पर ही बाँध से पानी छोड़े जाने पर यह जलप्रपात अपने पुराने सौंदर्य की कुछ झलक दे पाता है अन्यथा यह स्थिति यहाँ सदैव विद्यमान रहती है | फिर भी हम इस जलप्रपात के आसपास फैले जंगलों ,खाइयों व दूर होते चचाई नदी व तमसा के संगम को देखकर इसकी पुरानी कीर्ति का काफी कुछ अनुभव कर सके ,हम यह भी महसूस कर सके कि क्यों यहाँ के सौंदर्य को देखकर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री मंत्रमुग्ध रह गये थे तथा क्यों यह जलप्रपात कई साहित्यकारों व कवियों की रचनात्मकता का साक्षी रहा है ?चचाई के नैसर्गिक सौंदर्य को निहारकर ही सुप्रसिद्ध कवि एवं लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा की तूलिका गा उठी थी-
ओ देख खोल दृग यह प्रपात
य पतन दृष्टि का शुभ हास।
कवि जड़ वर्षा तक सिखलायेगा,
युग को चेतन का रम्य हम्सस।
इसके बाद हम निकले यहाँ से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पूर्वा जलप्रपात को देखने ,रास्ते में तमस नदी के पुल से गुजरते हुए जल की विशाल मात्रा देखकर इस प्रपात की सुंदरता का अहसास हुआ ,थोड़ा और आगे जाकर जब हम मुख्य सड़क को छोड़कर जलप्रपात के तरफ की कच्ची सड़क पर मुड़े तो वहीं से सामने विशाल पार्किंग प्रांगण में गाड़ियों व लोंगो की भीड़ ,जलप्रपात की संभावित जगह से ऊपर उठती धुआं की तरह जल फुहारें तथा इसका भयंकर गर्जन यहाँ आने की वजह को स्वमेव ही प्रतिफलित कर रहा था ,गाड़ी पार्क कर जैसे तैसे हम साइट सीन की जगह पहुंचे तो यहाँ का नजारा देख कर मन कुछ देर विस्मृत सा रह गया ,सैकड़ों मीटर दूर तक उठती व पहुँचती जल फुहारे मुख्य साइटसीन पर 5 मिनट खड़े होने पर बारिश के जैसे भिगा दे रहीं थी तथा प्रपात की गर्जना मन में सिहरन पैदा कर रही थी | बस फिर क्या था हम कुछ देर तक अपलक इस प्रपात को निहारते हुए इसके अद्भुद सौंदर्य में खोये रहे ,हमे इस बात का अहसास तब हुआ जब हम लगभग पूरी तरह भीग चुके थे | इसके बाद हम खाई की रेलिंग के साथ चलते हुए काफी आगे तक नदी की वैली देखने आगे की तरफ गए किन्तु जलफुहारें काफी आगे तक हमारे साथ तक होने के कारण पूरी तरह भीग जाने के डर से हम प्रपात के सामने से हटकर थोड़ा साइड से चलकर प्रपात के नजदीक के जंगलों के आसपास से इसकी ख़ूबसूरती व आवाज को महसूस करते रहे ,आज सुबह शुरू हुए सफर का यह सबसे खूबसूरत पड़ाव था जहाँ हम निः शब्द होकर घण्टों समय बिताया ,लगभग 3 बज चुके थे जब हमने यहाँ से लगभग 260 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खूबसूरत जबलपुर के लिए निकल पड़े |
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